व्रज - आषाढ़ शुक्ल दशमी
म्ंगलवार, 30.6.2020
आज कछु कुंजनमें बरबासी ।
दलबादरमें देख सखीरी चमकत है चपलासी ।।१।।
न्हेनी न्हेनी बूदंन बरखन लागी पवन चलत सुखरासी ।
मंद मंद गरजन सुनियत है नाचत मोर कलासी ।।२।।
विशेष - आज का श्रृंगार ऐच्छिक है.
आज श्रीजी को अधरंग (गहरे पतंगी) मलमल की परधनी और श्रीमस्तक पर गोल पाग धरायी जाएगी.
राजभोग दर्शन -
कीर्तन - (राग: मल्हार)
कुंवर चलोजु आगे गहवरमें जहाँ बोलत मधुरे मोर ।
विकसत वनराजी कोकिला करत रोर ।।1।।
मधुरे वचन सुनत प्रीतम के लीनो प्यारी चितचोर ।
‘गोविंद’ बलबल पिय प्यारी की जोर ।।2।।
साज - श्रीजी में आज श्री गिरिराज जी, श्री यमुना जी, वन एवं उसमे यथेच्छ विहार करते पशु-पक्षियों के चित्रकाम वाली पिछवाई धराई जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचैकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र - श्रीजी को अधरंग (गहरे पतंगी) मलमल की परधनी धरायी जाती है. ठाड़े वस्त्र नहीं धराये जाते हैं.
श्रृंगार - प्रभु को आज छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
हीरा के सर्व आभरण, श्रीमस्तक पर अधरंग (गहरे पतंगी) रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम तथा चमकनी गोल चंद्रिका और बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं.
पीले पुष्पों की रंगीन थाग वाली दो कलात्मक सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. इसी प्रकार दो मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं बेंतजी धराई जाती है.
पट ऊष्णकाल का एवं गोटी हकीक की आती है.
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